हम है तूफान .....(ग़ज़ल )
हम है तूफ़ान ,और कहकशा से कम नहीं ,
तुम्हारे मामूली शोलों से हम डरने वाले नहीं.
डटकर खड़े हैं तुम्हारे मुकाबिल अब हम,
तुम्हारी हुकमरानी के आगे झुकने वाले नहीं .
सदियों से लेते रहे तुम हमारा सदा इम्तेहान ,
मगर अब और कोई इम्तेहान हम देनेवाले नहीं.
सद्चरित्रता/पवित्रता सिर्फ हमारे ही जिम्मे क्यों,
पहले तुम साबित करो ,पाक़-दामन हो य नहीं.
खुदा ने बख्शी तुमसे भी कहीं ज्यादा नियामतें ,
बुध्दि ,कौशल, गुण और सोंदर्य से कमतर नहीं.
इस सारी कायनात में अखंड नारी रूप व्याप्त है,
तुम्हारे लाख मिटाने से भी हम मिटने वाले नहीं.
अब हम वोह मुकाम हासिल करेंगे आसमां से उंचा ,
अपने समाज की पाबंदियां तुम लगा सकते नहीं.
नारी-जनित अपराधों /अनाचारों का जाल बिछाते हो ,
शारीरिक /मानसिक शोषण की चाहे कोई इन्तेहा नहीं.
घर हो या बाहर सब जगह तुम शैतान रूप में ज़ाहिर,
ओह ! तुम्हारे ज़ुल्म की तो सच में कोई इन्तेहाँ नहीं .
मगर सच बात कहें ,भले तुम्हें कड़वी लगे , तुम ईर्षालू हो,
हमें खुद से आगे बढता देखना तुम्हारे अहम् को गंवारा नहीं.
अब तुम देते हो स्वेच्छा से हमारे सभी अधिकार/सम्मान,
अन्यथा हम छिनना भी जानते हैचूँकि हम दुर्गा हैं अबला नहीं.
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