कैसे यकीन करूँ ? ..(प्रद्युम्न की याद में , एक माँ की गुहार )
कैसे यकीन करूँ मैं मेरे लाल !
की तू नहीं है मेरे पास .
ढूढती हूँ तुझे हर जगह पर ,मेरे बाबु !
घर पर , या गर के आस -पास .
कैसे यकीन करूँ ? की तु लौट के नहीं आयेगा .
करती हूँ हर पल फिर भी तेरा इंतज़ार .
देखने तो आयोगे न ! एक बार ,बेशक सपनो में ,
की तेरी माँ तेरे बिन कितनी है बेकरार .
कैसे यकीन करूँ ,अब कल ही की थी बात ,
तुझे सुबह नहला-धुला कर ,राजा -बेटा बनाकर ,
साथ में मन -पसंद का टिफिन देकर स्कूल भेजा था.
फिर तेरा कमरा समेटकर तेरे आने का इंतज़ार किया था.
तेरे पिता तुझे रोज़ की तरह तुझे स्कूल छोड़ कर आये ही थे ,
की फ़ोन से तुरंत यह मनहूस खबर मिली .
बिजली सी गिरी हमारे दिल पर जब ,
तेरी मौत की खबर तेरे स्कूल वालों ने दी .
होश-हवास से खो गए ,कलेजा हमारा फट सा गया ,
देखा जो तेरा नाज़ुक सा ज़ख़्मी तन,दिल धक् सा गया.
यकीं नहीं अत कोई इतना बेरहम कैसे हो सकता, है .
शिक्षा का पवित्र मंदिर कहा जाने वाला विद्यालय ,
इतना गैर ज़िम्मेदार और हत्यारों का अड्डा बन सकता है.
यकीं कर सकते हो प्रभु ! हम पर क्या गुजरी होगी.
देखकर अपनी बाँहों में अपने कलेजे के टुकड़े की लाश ,
कितनी पीड़ा हुई होगी.
मैं तुमसे पूछती हूँ क्या क्या कमी रह गयी थी ,
मेरे प्यार ,लालन-पालन में, और तेरी आराधना में
जो तुमने हमारे छोटे से आशियाने मैं यह बिजली गिराई .
झुलसा कर मेरे नन्हे फूल को ,मेरी फुलवारी मेंआग लगायी.
क्यों नहीं रोका तुमने हत्यारे को ,और क्यों नहीं उसके हाथ काट डाले.
मेरे लाल का जिसने खून किया ,क्यों नहीं तुमने उसपर खंजर चलाये.
क्या बिगाड़ा था मेरे नन्हे ने किसी का ? क्यों उसपर किसी ने कुदृष्टि डाली,
हाथ उठाने से पहले उस दानव के ,उसकी निगाह क्यों न फोड़ डाली ?
कैसे यकीं करू की मेरे ममता से भरे आँचल के आलावा ,
मेरे लाल के लिए सुरक्षित न रहा यह गुरु का द्वारा.
अब इस हादसे के बाद कौन माँ भेजेगी स्कूल अपने नौनिहालों को ,
जीवित तो रहेंगे मेरे लाल ,बेशक उनका अनपढ़ रहना गवारा.
धिक्कार है इस शिक्षा -प्रणाली और लालची ,स्वार्थी शिक्षा-संस्थानों पर,
जो शिक्षा के नाम पर बस व्यापार करे.
अभिभावकों की मेहनत की कमाई को तो लूटें,
मगर बच्चों से अमानवीय व्यवहार करें .
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