मुझे भारत कह कर पुकारो ना .....( कविता)
मत पुकारो मुझे तुम India,
मुझे मेरे नाम से पुकारो न ,
निहित है जिसमें प्यार व् अपनापन ,
मुझे भारत कह कर पुकारो ना.
तुमने कभी जाना ? की मुझे क्या भाता है ,
तुमने तो समझा मुझे बस ज़मीं का टुकडा .
मैं हूँ इसके अतिरिक्त भी बहुत कुछ ,
मगर यह तुम्हारी समझ में कहाँ आता है. !
मुझे एक बार तो समझने की कोशिश करो न........
जो मुझे जानते थे ,समझते थे ,
वो तो ना जाने कहाँ चले गए ,
छिडकते मुझपर अपनी जान ,
मेरे वो प्रेमी कहाँ खो गए ?
तुम भी उनकी तरह मुझे प्रेम करके दिखाओ ना......
मेरे आन-बान -शान की खातिर जिन्होंने ,
दुश्मनों के समक्ष तलवारें अपनी निकल ली ,
मेरी जिंदगी के लिए मेरे वीर सपूतों ने ,
ज़िंदगियाँ अपनी मुझपर निसार कर दिन. ...
क्या तुम लिख सकते हो बलिदान की नयी गाथा ? ,बताओ ना ......इतराता था कभी मैं अपनी सुदरता और संपन्नता पर ,
अपनी सभ्यता ,संस्कृति व् आदर्शों पर मुझे मान था.
मेरे गौरव शाली इतिहास , एकता-अखंडता और ,
विद्वता /ज्ञान -विज्ञान का पुरे विश्व में बड़ा सम्मान था.
खो चुका हूँ जो तुम्हारी वजह से ,मुझे फिर से सब लौटा दो ना.....
तुम तो वो चिराग हो निकले हे आज के मानव !
जो अपना ही घर फूंक देता है .
नित नए जघन्य अपराध कर ,खून-खराबा कर ,
अपनी मातृभूमि को शर्मिन्दा करता है ,
नहीं देखा जाता मुझसे अब और , अब कृपया बस भी करो ना....
जाने क्यों तुम ज़मीर की क्यों नहीं सुनते ,
तुम तो अब खुदा की भी नहीं सुनते ,
किस्से करूँ मैं गुहार ,थक गया हुआ याचना करते .
एक बार तो वास्तव में मानव बन जाओ .
एक बार तो तुम मुझे मेरे नाम से पुकार लो ,
कसम से ! मुझे बड़ा आनंद मिलेगा.
तुम्हारे लबों पर आयेगा गर ''भारत ''नाम ,
तो दिल मेरा भी प्यार .ममता से भर जाएगा.
कृपया मुझे भारत कहकर पुकारो ना....