इब्तदा –ऐ- इन्कलाब (विपक्षी राजनीतिक दलों की ओर कटाक्ष)
(विपक्षी राजनीतिक दलों की ओर कटाक्ष)
इब्तदा –ऐ-
इन्कलाब
लो
वो तो वतन में नया इन्कलाब ले आये, अजी! आप क्यों सरश्के गम में नहा आये।
क्या
छुपा रखा था आपने भी कोई खजाना, उठाया जब
नकाब आपका होश ठिकाने आये।
रियाया
का हक मारकर उसी पर हुक्म चलाना, सच कहे तो आप अब तक
गुंडा गर्दी करते आये।
हम
जान चुके हैं तुम्हेंअब बंद करो नुक्ताचिनियाँ, तुम्हारे सभी गुनाह
अब हमारी नज़र में है आये।
दूसरों
पर उंगली उठाना तो बहुत आसां है जनाब! पसीने छुट गए आपके जब
खुद कटघरे में आये।
उनका
है ५६ इंच का सीना औ उसमें मजबूत इरादे, सही मायनो में ऐसे इंसान ही
इतिहास बनाते आये।
अब
यही लिखेंगे हमारे प्यारे वतन की नयी तकदीर, वरना आप जैसे कमजर्फ तो
अब तक इसे लूटते आये।
‘’अनु’’
को नाज़ है अपने वज़ीर-ऐ-आजम मोदी जी पर, उनकी सलामती की खातिर खुदा
से दुआ हम कर आये।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें