मेरी हमराज़ ,मेरी ग़ज़ल (ग़ज़ल )
मेरी ग़ज़ल है अफसाना मेरे दर्दो -गम का ,
महसूस करुँगी जो मैं वही तो बयां करेगी .
यह हमनशी है मेरे जार-जार बहते अश्कों की ,
लब जो ना कह सकेंगे ,तो इनकी जुबां बनेगी .
मेरे दिल के टुकड़े हुए और हुआ खुद्दारी का खून ,
जो है आँखों देखा , उसी सितम की दास्ताँ कहेगी.
मेरे अरमानो का जनाज़ा निकला कितनी धूम से ,
फिर खोयी मैं जिस गुमनामी में वोह जहां देखेगी.
मैने जब नहीं देखी कोई ख़ुशी अपनी जिंदगी में,
तो ज़ाहिर है मसर्रतों के जाम यह भी कैसे पीयेगी ?
मेरी ग़ज़ल है हमराज़, हमदर्द और हमसफ़र मेरी ,
जो मेरी मय्यत के साथ और मेरे साथ ही ख़ाक होगी .
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें