टूटे हुए ख्वाब ... (ग़ज़ल )
अपने हर ख्वाब को टूटते हुए मैने देखा है,
हर चेहरे के पीछे छुपी हकीक़त को देखा है .
गुनाह चाहे किसी ने भी क्यों ना किये हों ,
मगर सर सिर्फ अपना ही झुकता देखा है.
जिससे भी की उम्मीद वफ़ा की,प्यार की,
उसे ही दुश्मनी निभाते हुए हमने देखा है.
होते होंगे कुछ खुशनसीबों पर खुदा के करम,
हमने तो उसे बस अपने पर सितम करते देखा है .
उफ़ ! यह बेशुमार गम और बेमतलब सी जिंदगी ,
अपने ही अरमानो को दफ़न होते हमने देखा है.
इस पर भी रफ़ीक कहते है खुश रहो,मुस्कराओ तो !
हालातों पे रोने से क्या कोई गम गलत होता है !
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