फौजी (कविता)
भारत माँ की एक पुकार पर,
अपने कर्तव्य को समझकर ,
दुश्मनों से टक्कर लेने को ,
वोह रणभूमि पर उतर जाता है.
किसी राज्य में कोई खतरा हो ,
प्राक्रतिक आपदाया प्रकोप हो ,
सागर की गहरायी या आसमा की ऊँचाई
वो बेखौफ जान पे खेल जाता है .
न्योछावर कर अपने सब अरमान,
अपना तन-मन -धन कर कुर्बान ,
अपने परिजनों , व् परिवार को विस्मरण कर ,
अपने बलिदान से नाम अमर कर जाता है.
उसने अमर शहीदों में नाम लिखवाया
मरणोपरांत शौर्य सम्मान व् पुरस्कार पाया ,
आँखों में अश्क और ,दिल में जुदाई का गम सही ,
मगर इससे उसके अपनों का सर गर्व से ऊँचा होता है.
उसके परिवार की देखभाल करना का ,
पत्नी या संतान को आत्म-निर्भर बनाने का ,
किसी तरह हो जैसे भी हो आर्थिक सहायता का
सरकार द्वारा वायदा किया जाता है.
मगर हकीकत में है कुछ और ही बात ,
चार दिन की चांदनी फिर अँधेरी रात ,
कैसी फिर आर्थिक सहायता ,और कैसी नौकरी ,
उसके प्रियजनों का सामना भ्रष्टाचार से होता है.
तिरस्कार व् अपमान का घूंट पीकर ,
पक्षपात और धोखे को सहकर ,
समाज में ठोकरें खाते हुए उसके प्रियजन को ,
घोर गरीबी में जीवनअपना गुजारना पडता है.
उसके बलिदान का यह कैसा सम्मान ?
इन्हीं देशवासियों के लिए किया था बलिदान !
वही अब उसके परिजनों के दुश्मन बने बैठे हैं,
जिसकी वजह से अपना देश भी उनको बेगाना लगता है.
कुर्बान करता है जब कोई फौजी अपना जीवन ,
तो रहता है उसके दिल में एक विश्वास ,और अरमान ,
'' मेरे जाने के बाद मेरे प्रियजनों की देखभाल व् सम्मान ,
करेगा अवश्य हर देशवासी और मेरा राष्ट्र महान ''.
क्योंकि उसको बस एक नहीं ,पूरा देश परिवार सा लगता है.
इसीलिए हे देशवासियो ! तुमसे मेरी प्रार्थना है,
एक शहीद ने अपना फ़र्ज़ निभाया ,
एक फ़र्ज़ अपना तुम उसके लिए निभाओ ,
सरंक्षण, सम्मान ,व् स्नेह दो उसके परिवार को ,
जिसने अपने प्राण गंवाकर भारत माँ की लाज को बचाया ,
एक इंसान होने के नाते हमारा इतना फ़र्ज़ तो बनता है.
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