हाय यह मोटापा ! (व्यंग्य कविता)
जाने कैसी समस्या है यह ,
जो किसी तरह मिटती नहीं.
कर ले लाख कोशिश मगर ,
चर्बी है की घटती ही नहीं.
लज़ीज़ पकवानों केजो हम आशिक ,
क्या करें दिल है की मानता नहीं,
उस पर चटोरी जुबां का अंकुश ,
हम इससे छुट सकते नहीं.
अगर कोशिश भी करते है ,
की हो जाएँ हम इनसे बेज़ार .पर
ओट्स ,रागी , बेस्वाद सब्जियां,
और भूसे की रोटी लगे बेकार .
दिल को बहलाना पड़े इन्हीं से ,
चूँकि खाए बिना गुज़ारा नहीं,
व्रत -उपवास या योगा व् कसरत ,
किया बहुत मगर कोई फायदा नहीं.
जितनी भी बार शुरू किया मुहीम ,
जाने कितनी बार प्रयास किया .
कितने सालों से खाते आये कसम ,
मगर इस चटोरी जुबा ने हताश किया.
यह ज़माना करता आया है सदा मज़ाक ,
हम जैसे मजबूर बेबस , लाचारों को .
मगर कोई ना जाने हमारी पीड़ा ,
पूछेगा भी कौन हम बेचारों को .
कोई भी मनचाही ड्रेस पहनो जचती नहीं,
बुरी लगती है बहुत अपनी बेडौल फिगर.
ख्यालों में रहकर अक्सर सोचते हैं, काश !
हमारी भी होती शिल्पा ,व् माधुरी जैसी फिगर .
दोस्त करना चाहते हैं हमें उत्साहित ,
इसीलिए दिया करते है हमें व्याख्यान .
समझकर भी ना समझे नियत खोटी ,
जब सामने आ जाये जब लज़ीज़ पकवान .
चलो ! हम एक पल के लिए हम
कर भी दें इन आफतों को दर किनार .
मगर तब क्या करें ,जब कोई किसी ख़ुशी के
मौके पर लगा दे घर पर मिठाइयों का अम्बार ?.
हमारे मोटापे की वजह से मेरे अजीजों को ,
लगी रहती है बहुत हमारी बहुत फिकर .
चलते है वोह साये कीतरह पीछे -पीछे ,
चूँकि डगमगाते हुए हमारे क़दमों से ,
इन्हें लगता है भयंकर डर.
हमारा तो यह हाल है की ,
कुछ कहना है मुश्किल .
उठ गए तो बैठना मुश्किल .
और गर बैठ गए तो उठना मुश्किल .
हाय यह मजबूरियां ,यह दीवानापन ,
कैसे दूर करें यह अपना मोटापापन.?
जन्म के साथ ही जो विरासत में मिला ,
महसूस होता है मौत के साथ ही होगा दफन .
जो इस जन्म मे ना हुई पूरी आशा ,
शायद अगले जन्म में पूरी हो जाये .
यह जीवन तो कर दिया मोटापे ने बेकार ,
अगले जन्म मे बॉडी fit & slim मिल जाये.
! आमीन !
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