इन्तेहा -ऐ- इश्क (ग़ज़ल)
एक बार देखकर भी फिर देखने की तमन्ना ,
उफ़ ! इस पैमाना-ऐ- दीदार में कुछ कमी सी है .
देखा तो तुझे ज़रूर खूब नज़र भर के मगर ,
जबसे है देखा इनमें कुछ नमी सी है.
वायदा था तुमने किया और हमने इंतज़ार ,
महसूस होता है की हममे सब्र की कमी सी है .
ले चला वक़्त का कारवां जहाँ हम भी चलते रहे ,
पर वोह रफ़्तार कहाँ ,यह जिंदगी कुछ थमी सी है.
यह इन्तेहा -ऐ -इश्क है तुम मानो या ना मानो ,
हो तो हमसे जुदा ,मगर तुममें कुछ बातें हमी सी है.
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