धर्मान्धता पर कटाक्ष
लेबल (कविता)
मुंह में राम ,बगल में छुरी ,
ऐसी प्रार्थना , रहती है अधूरी .
मगर इस सच्चाई से यह है नज़रें चुराते ....
मगर इस सच्चाई से यह है नज़रें चुराते ....
करो पूजा -पाठ या व्रत -उपवास ,
मगर दिल में नहीं प्रभु का वास ,
लेकिन छेनी -ढोलकीयां ज़ोरों से बजाते ...
लेकिन छेनी -ढोलकीयां ज़ोरों से बजाते ...
भक्त -जन का लेबल लगाकर ,
साधू-सन्तों के प्रेमी बताकर ,
दिन-रात उनके चक्कर है काटते ...
दिन-रात उनके चक्कर है काटते ...
समझते हैं खुद को शुधात्मा ,
क्या वास्तव में है शुद्ध -आत्मा ?
खुद को भगवान् का प्रतिनिधि बतलाते ....
खुद को भगवान् का प्रतिनिधि बतलाते ....
हर प्राणी के अंदर छुपा हुआ है शैतान ,
पर्दे के पीछे पर्दा देखकर हम हुए हैरान .
आखिर किस तरह का अभिनय यह करते ....
आखिर किस तरह का अभिनय यह करते ....
विनम्र भाव से हाथ जोड़ें सर को झुकाएं ,
मीठी वाणी सुनकर लोग धोखा खा जाएँ .
विनम्रता में अच्छों-अच्छों के कान हैं कतरते ...
यह सब प्रपंच के माध्यम है सारे ,
हम क्या जाने भोले -भाले ,बेचारे ,
इन्हें तो बस प्रभु ही हैं समझ सकते ...
हाँ ! बस प्रभु ही तो जानते हैं इनके राज़ ,
चाहे कितने ही आवरणों में छिपे हो इनके राज़ .
इनके पापों की सज़ा तो बस वहीँ है दे सकते ....
मीठी वाणी सुनकर लोग धोखा खा जाएँ .
विनम्रता में अच्छों-अच्छों के कान हैं कतरते ...
यह सब प्रपंच के माध्यम है सारे ,
हम क्या जाने भोले -भाले ,बेचारे ,
इन्हें तो बस प्रभु ही हैं समझ सकते ...
हाँ ! बस प्रभु ही तो जानते हैं इनके राज़ ,
चाहे कितने ही आवरणों में छिपे हो इनके राज़ .
इनके पापों की सज़ा तो बस वहीँ है दे सकते ....