सुन ऐ पाकिस्तान ! (कविता)
मिटा डाला तूने खुद ही अपने हाथों ,
अपने वतन के फूलों / मुस्तकबिल को।
यह राह तो तूने खुद है चुनी।
हम तो करते रहे आगाह तुझे ,
डराया ,धमकाया ,समझाया तुझे ,
मगर तूने हमारी एक ना सुनी।
हम तो बरसो से भुगत रहे हैं.
तेरी लगायी आग मैं जल रहे हैं ,
आज तेरी खुशियां है भुनी।
अमन और प्यार की तू सिर्फ बातें करता है ,
मगर धोखे से पीठ पीछे छुरा घोंपता है।
यह सबक है तेरा गर तूने हमारी ना मानी।
तू है तो भारत माँ की बिगड़ी हुई संतान ही।
अलग होकर भी जो करता रहा है परेशान ही।
तेरी नियत में नहीं शराफत औ कद्र्दानी।
सुन रे पाकिस्तान ! अब तो हो जा ख़बरदार ,
ज़हन में बिठा ले मासूमो की चीख औ पुकार।
थाम ले हमारा दामन और छोड़ दे मनमानी।
गर तू साथ दे सच्चे मन से हमारा ,
हर मसला हल कर लेंगे।
मिटाकर दहशतगर्दी जहाँ से ,
अमन,प्यार व् भाईचारा कायम करेंगे
ना चलने देंगे आतंकवादियों की नाफरमानी।
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