बाल -दिवस पर विशेष
आओ बच्चो ! (कविता)
आओ बच्चो ,आओ !
तुम्हें माँ भारती है पुकारती।
देखो ! कितनी आशा से ,
तुम्हें है निहारती।
स्वच्छ करना है तुम्हें
इस धरती का कोना- कोना।
यह सारा नीला आकाश और
धरती का हरा बिछोना।
क्योंकि स्वछता ही समृद्धि है लाती।
स्वच्छ करना है तुम्हें ,
यह पूरा मानव-समाज।
तोड़ने होंगे सभी सादे-गले,
पुराने खोखले रिवाज़।
क्योंकि तोड़कर ही कोई नयी चीज़ है बनती।
स्वच्छ करनी है तुम्हें ,
जन -जन की विचार धारा।
उच्च चरित्र,उच्च आदर्श युक्त ,
संस्कारो की शीतल धारा।
क्योंकि उदार ह्रदय से ही संस्कृति है आती।
तुम हो देश का भविष्य, बच्चो !
तुम ही तो हो इसके करणधार।
तुम ही हो कल के शासक और
संरकृति -सभ्यता के प्राण आधार।
माता तुम्हें तुम्हारे कर्तव्यों का बोध है कराती।
बापू के सपनो को साकार करो।
माँ भारती को अब ना निराश करो।
लहू से सींचा जिस को शहीदो ने ,
उस चमन को अब गुलज़ार करो।
बड़ी देर माँ भारती तम्हारी बात है जोहती।
आओ बच्चो। .......
तुम्हें माँ भारती है पुकारती।
देखो ! कितनी आशा से ,
तुम्हें है निहारती।
स्वच्छ करना है तुम्हें
इस धरती का कोना- कोना।
यह सारा नीला आकाश और
धरती का हरा बिछोना।
क्योंकि स्वछता ही समृद्धि है लाती।
स्वच्छ करना है तुम्हें ,
यह पूरा मानव-समाज।
तोड़ने होंगे सभी सादे-गले,
पुराने खोखले रिवाज़।
क्योंकि तोड़कर ही कोई नयी चीज़ है बनती।
स्वच्छ करनी है तुम्हें ,
जन -जन की विचार धारा।
उच्च चरित्र,उच्च आदर्श युक्त ,
संस्कारो की शीतल धारा।
क्योंकि उदार ह्रदय से ही संस्कृति है आती।
तुम हो देश का भविष्य, बच्चो !
तुम ही तो हो इसके करणधार।
तुम ही हो कल के शासक और
संरकृति -सभ्यता के प्राण आधार।
माता तुम्हें तुम्हारे कर्तव्यों का बोध है कराती।
बापू के सपनो को साकार करो।
माँ भारती को अब ना निराश करो।
लहू से सींचा जिस को शहीदो ने ,
उस चमन को अब गुलज़ार करो।
बड़ी देर माँ भारती तम्हारी बात है जोहती।
आओ बच्चो। .......
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