ज़िंदगी का प्याला (ग़ज़ल )
इस जिस्त के प्याले में वैसे बचा ही क्या है ,कुछ नहीं ,
मगर मेरे रफीक कहते है अभी तो उम्र पड़ी है बाक़ी।
मगर मेरे रफीक कहते है अभी तो उम्र पड़ी है बाक़ी।
तमाम अरमान लिए दिल जल-जल कर खाक हो गया,
राख में दबी हुई सुलगती चिंगारी अब भी है बाक़ी।
आसमान कोई नज़र नहीं आता कैसे फैलायुं पंख ,अपने ,
कश्मकश है फिर भी उड़ने को,होंसले अब भी है बाक़ी।
क़दम मेरे थक चुके हैं मंज़िल का निशाँ तलाशते ,
मगर उम्मीद का दामन हाथों में अब भी है बाक़ी।
तक़दीर ने लाकर खड़ा किया हमेशा दोराहे पर मुझे ,
अपना मुस्तकबिल संवारने का हुनर अब भी है बाक़ी
वक़्त का कारवां कभी किसी के रोकने से रुका है न रुकेगा ,
मगर हर मुश्किलात मैं अपनों का साथ अब भी है बाक़ी।
खुदा के इम्तेहान ख़त्म नहीं होते ना मेरी हिम्मत ,
उस परवरदिगार पर रूह का यकीं अब भी है बाक़ी।
सुन्दर गज़ल |
जवाब देंहटाएं