मलेशियन विमान दुर्घटना पर विशेष
क़यामत का दिन (ग़ज़ल)
इस तरह फलक से आ गिरे ,
की फर्श पर नमो-निशान न मिला।
ठोकर मारी बेरहम वक़्त ने ऐसी ,
की आह भरने का मौका भी न मिला।
बेशुमार ज़िंदगीयां हो गयी फ़ना ,
कर ना सके कुछ भी शिकवा-गीला।
रक्कासा बन मौत झूमकर नाची ,
अपने क़दमों तले मासूमों को दिया मिला।
यह क़यामत पे क़यामत तोड़ी किसने ,
किसकी साजिशों से किसी का आशियाना जला ?
अमन का झूठा दवा करने वालो सुनो ,
बंद करो यह आपसी दुश्मनी का सिलसिला।
और कितनी बेगुनाहों की लाशें चाहिए तुम्हें ?
बनाने को इंसानियत का मक़बरा ,
वहशी तो नहीं हो तुम ,इंसान ही हो न !
तुम्हें खुद ने इंसान बनाया ,क्या यह दोगे उसे सिला ?
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