ऐसा हो सौभाग्य हमारा (कविता)
मनुष्य बनूं तो , सच्चा सेवक कहलायुं ,
तेरे आनंदपुर के दरबार में।
पशु बनूं तो तेरी गाये कहलायुं ,
तेरे आनंदपुर की गौशाला में।
वृक्ष बनूं तो छाया करूँ तुझपर ,
तेरे आनंदपुर की सड़कों में।
मिटटी बनूं तो ,तेरे चरणो की धूलि कहलायुं ,
तेरे आनंदपुर की धरती में।
पानी बनूं तो ,तेरे चरणो को धोयुँ नित्य ,
तेरे आनंदपुर के सरोवर में।
पंछी बनूं तो कोयल व् मयूर बनूं ,
कुहकूँ और नाचूं ,
तेरे आनंदपुर की बगिया में।
बादल बनूँ तो सदा वर्षा करूँ ,
धानी चुनर बिछा दूँ ,
तेरे आनंदपुर की सभी दिशाओं में।
नदिया बनकर लहरायुं ,
तेरे आनंदपुर के तट में।
कुत्ता या बिल्ली बनूँ ,तो संगत की जूठन खाकर ,
अपना भाग्य मनायुं ,
तेरे आनंदपुर के दरबार में।
जितने भी जनम लूँ ,
जिस भी जून में जायुं ,
अपने निम्न -उच्च कर्म अनुसार ,
बस तेरे हैं तेरे कहलायें ,
है तुझपर सौ जनम भी कुर्बान ,
तेरी सेवा के लिए ,तेरी भक्ति के लिए ,
बार-बार जनम लूँ ,
तेरे आनंदपुर के दरबार में।
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