हे वसुंधरा ! हम तेरे ऋणी हैं (कविता)
हे वसुंधरा ! हे माता !
तुम हमें कितना देती हो ,
मगर बदले में कुछ नहीं लेती हो।
तुम कितनी महान हो।
तुम हमें देती हो ज़मीन ,
जिसपर प्रारंभ करते हैं हम
अपनी जीवन-यात्रा।
तुमने ही दिया हमें आधार ,
आत्म-विश्वास ,आत्म-निर्भरता ,
तुमने ही हमें सिखाई।
तुम्ही हमारी प्रथम गुरु हो।
तुमने दिया हमें आकाश ,
हमने अपने होंसलों , उम्मीदों को
पंख लगाये ,
परवाज़ बनकर उड़ चला मन ,
अपने क्षितिज को पाने ,
यह निडरता ,यह साहस ,
तुम्हारी ही तो देन है।
क्योंकि तुम हमारा विश्वास हो।
तुमने दिए हमें अक्षुण जल-संसाधन ,
कुंएं ,तालाब , नदियां व् सागर ,
जल रूप में मिला जीवन हमें ,
तरलता , सघनता , वाष्प ,
आँखों ने पायी तो मनुष्य
होने का भाव तुमने जगाया।
तुम हमारी प्रेरणा हो।
तुमने दिए हमें विभिन्न
वनस्पतियों के भंडार ,
पेड़ -पौधे , वन ,
जिनसे पाया हमने ,भोजन व्
अौषधियाँ बेशुमार।
कई तरह के स्वादों से परिचय ,
करवाया तुमने।
तुम अन्नपूर्णा हो.
तुमने दी हमें पवन ,
चंचल, शीतल ,निर्मल ,
श्वासों को मिला हमारे सम्बल।
माता ! तुम हमारी ही नहीं ,
सभी प्राणी -जगत की तुम प्राण हो.
तुमने ही दिए हमें चाँद और सूरज ,
तुम्हारी यह दो उज्जवल आँखें ,
शीतलता व् ऊर्जा समरसता से
हम प्राणियों को प्राप्त होती है।
निष्पक्षता का पाठ तुम हमें पद्धति हो।
तुमने हमें दिए पहाड़।
जो है सशक्तता व् सुरक्षा की पहचान।
और दिए तुमने विभिन्न रंगीले मौसम ,
वर्षा, वसंत, शीत , या ग्रीष्म ,
हर हाल में जीने की कला ,
तुम हमें सिखाती हो।
माता ! हमपर है तुम्हारे कितने
उपकार!
भूल भी सकता है कैसे यह संसार !
निस्वार्थ भाव से ,स्वेच्छा से , तुम अपना
सर्वस्व लुटाती हो।
और बदले में हमसे कुछ भी नहीं ,
मांगती हो।
हे! माता ! हम अति-निकृष्ट प्राणी ,
तुम्हें दे भी क्या सकते हैं.?
अपितु हम मनुष्यों व् अन्य प्राणियों का बोझ भी
तुम सहजता से उठती हो।
तुम्हारी सज्जनता और तुम्हारी सहनशीलता का
कोई जवाब नहीं।
हे जननी ! हम तुम्हारे लिए कर भी क्या सकते हैं।
अपितु हम मनुष्यों व् अन्य प्राणियों का बोझ भी
तुम सहजता से उठती हो।
तुम्हारी सज्जनता और तुम्हारी सहनशीलता का
कोई जवाब नहीं।
हे जननी ! हम तुम्हारे लिए कर भी क्या सकते हैं।
हम तो स्वयं तुमपर निर्भर हैं ,
मगर तेरे चरणो में अपना जीवन- अर्पण
तो कर सकते हैं. .
हम तो ऋणी हैं तुम्हारे ,
सौ जनम लेकर भी यह ऋण नहीं
चूका नहीं सकते.
भला माता का ऋण कोई चुका सकता है।
हे वसुन्धरे ! तुम हमारी माता हो.
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