अन्याय (कविता)
कुछ नहीं कहती यह धरती ,
जब हम इसे खोदते है।
इसके जल से हम अपनी
और सब प्राणियों की प्यास बुझते हैं.
खेती करके अनाज उगाते हैं ,
और सब प्राणियों का पेट भरते हैं.
भारी से भारी प्राणियों और हमारा व्
हमारे पापो का बोझ भी वह उठाती है।
अपनी संतानो के लिए यह माँ ,
कितना कष्ट सहती है।
मगर इसे सबसे अधिक कष्ट ,
तब होता है।
इसका दिल खून के आंसू रोता है.
जब इसका कलेजा चीर कर ,
इससे एटम बम बनाया जाता है।
हर तरफ करुणामय चीत्कार ,
इसका परिणाम होता है.
समस्त प्राणी -जगत का अंत ,
प्रकृति क अंत ,
मनुष्य जाति का अंत ,
या यूँ कहो ,मानवता का अंत
हो जाता है।
इस भयानक विस्फोटों ,
इस दर्दीली चीखों में क्या सुनाई देती है
धरती माता की सिसकियों की आहत ?
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