तिजारत ( ग़ज़ल )
कद्र तुम दिलवालों की क्या करोगे ,
सौदागर हो तुम प्यार को गरज़ से तोलोगे।
जब तक निभ गयी निभा दी गयी दोस्ती ,
रास न आया साथ तो मुंह फेर लोगे ,
एक तिजारत ही तो कि थी ,कब दिल को लगाया ,
ना हुआ मुनाफा , तो दिल कहीं और जोड़ लोगे।
इस दुनिया-ऐ-फानी में पानी है सारे रिश्ते ,
जो भा गया प्याला उसी में समा जाओगे।
यह भी ना सोचा कि क्या गुज़रेगी शीशा-ऐ-दिल पर,
शीशा ही तो है टूट गया तो टूट गया ,क्या करोगे।
इतनी फुर्सत कहाँ कि दूर करें गीले-शिकवे ,
कोई भरता रहे आहें,तुम अपनी राह पकड़ोगे।
अरे छोड़ो भी अनु ,क्या दिल को आज़ार लगा रखा है !
जो ना समझ सके ज़ज़बात तो नुक्ताचीनी से क्या लोगे।
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