गुरुवार, 30 जनवरी 2014

prem ki mahatta

                                              
                                                          प्रेम   की  महत्ता  
  • प्रेम की   बेल   दूर   रहने  से   फलती है  और  पास   रहने से मुरझा जाती है। 
  • प्रेम   खुदा   कि सच्ची   इबादत  है। 
  • दुनिया   में    सबसे  बड़ा   अपराध  है  किसी का प्यार भरा दिल तोड़ना। 
  • प्रेम   ईश्वर   का ही प्रतिरूप  है। 
  • प्रेम   अंधा   होता  है  क्योंकि   प्रेमी   अपने प्रेम-पात्र   कि छोटी -बड़ी  सभी भूलों  को  अनदेखा कर देते हैं। 
  • प्रेम   संसार  कि   बड़ी से बड़ी   दौलत   से भी   ज़यदा क़ीमती   है। 
  • प्रेम   का मुख्य  द्वार   आँखें   है  ना कि  जुबां। 
  • प्रेम  में   समर्पण  और निस्वार्थ भाव   शामिल  होता है तभी  प्रेम महान होता  है। 
  •  प्रेम    तुच्छ   से तुच्छ  वस्तु  /मनुष्य  को  मूल्यवान    बना देता है। 
  •   प्रेम    रूह   में    निहित  होता है   भौतिकता   में    नहीं। 
  • निस्वार्थ प्रेम  ही    प्रभु  का निवास-स्थान  है 
  • प्रेम   जीवन  के संघर्षों   से मुक्ति  का मार्ग   बनाता है। 
  • प्रेम    प्रेरणा   का   उदगम -स्त्रोत  है। 
  • सच्चा  प्रेम   मात्र  आकर्षण  ना होकर  ठोस हक़ीक़त है। 
  • प्रेम   शक्ति का पुंज  है। 
  • सच्चा  प्रेम  जीवन  में    केवल  ३  लोगों से  ही मिलता है माता -पिता ,गुरु   व्  भगवान्। 
  • प्रेम   अजर-अमर ,अविनाशी है।   इंसान  मर जाते   है मगर   प्यार नहीं मरता। 
  • प्रेम   आंतरिक  सोंदर्य   को महत्ता  देता है  बाह्य  सौदर्य को नहीं।  
  • जिस ह्रदय  में   यदि प्रेम   अपना स्थान बना ले वहाँ  प्रेम कि अन्य सखिओ   (दया,करुणा, सहयोग, नम्रता ,   सहनशीलता,  संतोष,   पवित्रता  ,  आदि   सवतः   ही पदार्पण  हो  जाता  है। 
  • प्रेम   बुरे से  बुरे  व्यक्ति  को भी महान   बना सकता है। 
  •  प्रेम   पूर्णतः   स्वायत  व्   सवतंत्र   होता   है।  
  • सच्चे  प्रेम   के समक्ष   ईश्वर  को भी झुकना पड़ता है। 
  • प्रेम   सर्व-व्यापी  व् सर्वरूप  है। 
  • प्रेम    में  शुधता  व् शुभ्रता  आवश्यक  है। 
  • प्रेम   महान  होता है। 

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