मनुष्यता का श्रृंगार करो। (कविता)
हे मनुष्य !
यह प्राथना है तुमसे ,
इस सम्पूर्ण सृष्टि की।
तुम अपना पुनर्निर्माण करो।
अपनी मानव जाति के लिए,
मेरी अन्य संतानो के लिए ,
एक बार पुनर्विचार करो।
एक बार फिर उठो !
निकलो अपनी बुराईयों ,गुनाहों
के दलदल से।
काम-क्रोध ,मद-लोभ , हिंसा ,
ईर्ष्या ,द्वेष ,झूठ ,मिथ्याभिमान ,
असंतोष ,अकर्मण्यता आदि को त्याग दो।
जो तुमने स्वयं निर्मित किये ,
यह मकड़जाल।
तोड़ सकते हो स्वयं ही ,
कर सकते हो इन्हें समूल नष्ट।
मुझे ज्ञात है , विशवास है तुमपर।
कर सकते हो तुम .
और तुम करोगे।
मेरी खातिर ,
अपनी माँ कि खातिर,
करोगे अपना दामन साफ़।
इन सभी कलुषताओं से।
और पुनः श्रृंगार करो ,
दया, ममता, प्रेम, भाई चारे , संतोष,
सत्य , समानता , निष्काम-भाव ,परोपकार ,
आदि सभी दिव्य आभूषणो से स्वयं को ,
अलंकृत करो।
तत्पश्चात तुम नज़र आओगे ,
एक सज्जन पुरुष ,
एक दिव्य-आत्मा ,
इसके परिणाम सवरूप तुम्हारी दिव्यता से
तुम्हारे आलौकिक प्रकाश से प्रकाशित होगा ,
इस जग का कोना-कोना।
तुम्हें तुम्हारी मनुष्यता कि दुहाई है।
तुम्हें मानव-धर्म कि पताका फहरानी है।
तुम्हें अपने राष्ट को पुनः सम्मान दिलवाना है।
और इसीलिए मैं तुमसे निवेदन करती हूँ।
मानव हो तुम , हो तुम मनु कि संतान।
अपनी मनुष्यता का श्रृंगार करो।
हे मनुष्य !
यह प्राथना है तुमसे ,
इस सम्पूर्ण सृष्टि की।
तुम अपना पुनर्निर्माण करो।
अपनी मानव जाति के लिए,
मेरी अन्य संतानो के लिए ,
एक बार पुनर्विचार करो।
एक बार फिर उठो !
निकलो अपनी बुराईयों ,गुनाहों
के दलदल से।
काम-क्रोध ,मद-लोभ , हिंसा ,
ईर्ष्या ,द्वेष ,झूठ ,मिथ्याभिमान ,
असंतोष ,अकर्मण्यता आदि को त्याग दो।
जो तुमने स्वयं निर्मित किये ,
यह मकड़जाल।
तोड़ सकते हो स्वयं ही ,
कर सकते हो इन्हें समूल नष्ट।
मुझे ज्ञात है , विशवास है तुमपर।
कर सकते हो तुम .
और तुम करोगे।
मेरी खातिर ,
अपनी माँ कि खातिर,
करोगे अपना दामन साफ़।
इन सभी कलुषताओं से।
और पुनः श्रृंगार करो ,
दया, ममता, प्रेम, भाई चारे , संतोष,
सत्य , समानता , निष्काम-भाव ,परोपकार ,
आदि सभी दिव्य आभूषणो से स्वयं को ,
अलंकृत करो।
तत्पश्चात तुम नज़र आओगे ,
एक सज्जन पुरुष ,
एक दिव्य-आत्मा ,
इसके परिणाम सवरूप तुम्हारी दिव्यता से
तुम्हारे आलौकिक प्रकाश से प्रकाशित होगा ,
इस जग का कोना-कोना।
तुम्हें तुम्हारी मनुष्यता कि दुहाई है।
तुम्हें मानव-धर्म कि पताका फहरानी है।
तुम्हें अपने राष्ट को पुनः सम्मान दिलवाना है।
और इसीलिए मैं तुमसे निवेदन करती हूँ।
मानव हो तुम , हो तुम मनु कि संतान।
अपनी मनुष्यता का श्रृंगार करो।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें