माँ ओ माँ ! कब मिलेगा मुझे इन्साफ ?
( दामिनी की गुहार भारत माता
माँ ओ माँ ! ,
क्या सुन रही है तू ,
मेरी सिसकियों की आहट।
क्या देख रही है तू ,
मेरी और मेरे स्वजनों की हालत ,
कितना तड़प रही हूँ मैं ,
क्योंकि सर से पाव तक छलनी हूँ मैं।
आहत हुआ मेरा स्वाभिमान,
टुकड़े टुकड़े हुआ मेरा अरमान,
तोड़ डाला मेरा हर सपना ,
और मेरे माता-पिता का भी ,
जो उन्होंने मेरे लिए देखा था।
बोलो !क्या गुनाह मैने किया था?
क्या गुनाह उन्होंने किया था?
अपनी होनहार बेटी में उन्होंने ,
अपनी होनहार बेटी में उन्होंने ,
अपना आने वाला कल देखा था ,
मुझमें अपना सुनहरा भविष्य उनका सहारा बना चाहती थी
जिंदगी में कुछ बनना चाहती थी
जिंदगी में कुछ बनना चाहती थी
और इसी लिए अपने लक्ष्य हेतु ,
अपनी लगन व् मेहनत ,
और अपने माता-पिता के प्रति
कर्तव्य हेतु कटिबद्ध थी मैं।
कितनी सीधी -सरल मैं ,
और आईने सी साफ़ थी जिंदगी मेरी।
कभी किसी का बुरा नहीं चाहा ,
तुझे सब पता है , ना माँ !
फिर क्यों हुआ मेरे साथ यह दुरा चार ?
क्यों हुआ पशुयों जैसा व्यवहार ?
क्या बिगाड़ा था मैंने उनका ?
मेरा तो कोई दुश्मन भी नहीं था .
फिर यह दुश्मन कहाँ से आये
मैने तो कभी ना पहुंचाई किसी को चोट ,
मैने तो कभी ना पहुंचाई किसी को चोट ,
फिर मेरा जिस्म और आत्मा
क्यों की गयी छलनी ?
क्यों माँ !
अब तक तो कोई गम
नहीं था जिंदगी में ,
खुदा को भी बहुत चाहा ,
कोई कसर ना छोड़ी उसकी बंदगी में। इसीलिए सुभह से महके हुए गुलज़ार सी यह जिंदगी।
मगर शाम ढलते ही
यह मेरी गुलज़ार सी जिंदगी
बर्बाद हो गयी ,
और ना इंसानों से ,
ना ही खुदा से ,
मेरी गुहार भी सुनी ना गयी।
व्यर्थ हो गयी सारी बन्दगी।
नोच -खसोट के ,
तोड़ -ताड़ के ,
नष्ट -भ्रष्ट करके ,
छलनी करके ,
तार -तार कर मेरा दामन ,
चीथड़े करके मुझे सड़क पर यूँ फेंका।
इतनी बेदर्दी ,इतनी बेकद्र जैसे मै कोई इंसान नहीं ,कोई वस्तु हूँ।
जग तो यह सारा तब मेरे हाल पर रोया था.
मेरे कफ़न को अपने आंसुओं से धोया था.
क्या तब माँ ! तेरा कलेजा नहीं फटा था. ?
मुझे देखकर तेरी ममता ज़रूर रोई होगी।
मगर जानती हूँ मैं ,
मेरे दर्द से तू भी कहाँ अनजान होगी ,
मेरी तरह तू भी मजबूर होगी ,लाचार होगी।
तभी तो अब तक ना दिलवा पाई मुझे इन्साफ।
अरे ! जो तेरे ना हुए ,वोह मेरे क्या होंगे।
सुन माँ ! क्या तेरी सभी बेटियाँ ,
यूँ ही लाचार रहेंगी, मेरी तरह।
कब तक! आखिर कबतक !
यह जंगल राज सहेंगी ?
कब इन जंगली कुत्तों से ,भेडियों से ,
अपने आत्म-सम्मान ,लाज ,
और जीवन रक्षा कर पाएंगी ?
और जीवन रक्षा कर पाएंगी ?
माँ ! हम भी तो इंसान हैं !
कानून और पुलिस -प्रशासन के हाथों का
खिलोना कब तक बनी रहेंगी ?
कब मिलेगा मुझे इन्साफ ?
कब मिलेगा हमें इन्साफ ?
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