काश !तुम मेरे होते ( ग़ज़ल)
काश ! तुम एक बार तो मेरे हो जाते ,
औरों की तरह हमारे भी किस्से होते,
अब तक रहे दूर नदी के दो किनारों की तरह ,
एक बार तो यह फासले मिट गए होते ,
बा -मुश्किल मिले थे हम सदियों के बाद,
काश ! यूँ मिलकर फिर जुदा ना होते।
अपने -अपने गुरुर में खोये रहे रात-दिन ,क्यों?
समझते गर एक दुसरे को तो शायद हमराज़ होते।
हमारे बीच ना आता यह ज़माना दिवार बनकर,
मुहोबत औ इश्क के पाक रिश्ते ना टूटते ,
अब आलम यह है की हम है तनहा इधर ,और तुम भी,
मिलकर चलते क़दम से क़दम तो हमसफ़र होते,
काश ! तुम बस एक बार तो मेरे होगये होते ,
जीते तो हमसाया बनकर ,मरते तो ताज महल होते।
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