हम हैं आम आदमी
हम कहाँ के इतने भाग्य शाली ,
जो मुंह में चांदी का चम्मच लेकर पैदा होते,
सतत संघर्षमय जीवन के बदले
हमें हैं मिलता मात्र एक आना सुख.
मगर हम इतने निरीह भी नहीं ,
की कामना करें किसी फ़रिश्ते की ,
जो हाथ बढ़ाकर हर ले हमारे सभी दुःख।
हम तो ऐसे दीवाने है जो अशक्त होने पर भी ,
प्रयत्न रत हैं समय से क़दम मिलाने में,
ना मिला पायें कदम ,यह और बात है ,
ज़माने की हवा तो बदल लेती है अपना रुख।
वोह तो किसी भी शय रुक नहीं सकती
हमारे लिए !
हम कहाँ के इतने सामर्थ्य वान की
रोक लें इसके क़दमों को।
इस जिंदगी की शतरंज में दाव में
लगा रहता है हमारा अस्तित्व।
हम तो इतने भाग्य शाली भी नहीं ,
की मृत्यु बन जाये हमारी सहचरी।
और हम मुक्त हो जाये हर अड्चानो से ,
हमारा तो इसी तरह का जीना -मरना है ,
क्योंकि हम हैं एक आम आदमी।
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