आप्शन ( विकल्प )
स्थान या औकात .
यह उसे खुद ही नहीं पता।
कभी पूछा भी नहीं .
पूछा भी तो क्या हासिल होगा।
वही पुराना घिसा -पिटा जवाब मिलेगा।
पति कहेगा तू बच्चों के लिए आई है ,
बच्चे कहेंगे की तू पिता के लिए आई है ,
वर्ना हम तो बड़े हो गए ,
हमें माँ की ज़रूरत नहीं है।
क्या है वोह ? माँ या पत्नी .
कहने भर को माँ .
कहने भर को पत्नी .
मगर कुछ भी नहीं।
सास से पूछा तो जवाब मिला ,
तू सेवा करती जा ,बस !
है तू बस सबकी सेवा के लिए .
काम वाली जो मिल नहीं रही थी .
बच्चो को ,मेरे बेटे को खाना कौन खिलाता ?
घर का ख्याल कौन करता ?
घर का काम कौन करता ?
इसीलिए तो !
मगर तुझे क्या दुःख ?
सेवा करी जा !
पुन्य का काम है यह
अपना जीवन सफल कर .
घर की छत तो मिली हुई है .
और तीनो समय का खाना .
और क्या चाहिए?
सुनकर यह कड़वा सच ,
उसके पैरों से ज़मीं खिसक गयी .
यूँ लगा उसे ,जैसे वोह आसमान से
ज़मीं पर गिर गयी .
हाय तौबा! क्या वोह सिर्फ
सेविका है .?
या वोह एक आया है।
इस घर ने क्या भूमिका ,
इसकी निर्धारित की
उच्च शिक्षा प्राप्त वह ,
आधुनिक व प्रगतिशील विचारधारा के
माहोल में पली वोह .
स्वतंत्र जीवन -यापन करने वाली वोह .
क्या मात्र ऑप्शन है?
आप्शन यानि विकल्प .
जिसे जब चाहे जहाँ इस्तेमाल कर लिया .
माहोल, समय या रिश्ते केलिए .
अन्यथा कमरे के किसी कोने में पटक दिया।
ऑप्शन मात्र शब्द होता है ,
या किसी वस्तु के लिए इस्तेमाल होता है
मगर वोह तो जीवित मनुष्य है
उसके अंदर दिल है ,
उसके अंदर दिमाग है ,
भाव है , विचार हैं ,संवेदनाएं हैं .
किसी को क्या पता ?
एक दर्द का सागर वोह
अपने अंदर समेटे हुए है .
मगर इस घर को क्या ?
वोह क्यों समझेंगे इसे इंसान ?
गर इंसान समझा तो ,
क्या देने ना पड़ेंगे उसे आधिकार
जबकि उसके लिए निर्धारित किये गए
है मात्र फ़र्ज़ .
फ़र्ज़ !फ़र्ज़ !और बस फ़र्ज़ !
और कुछ नहीं .
वोह इंसान नहीं तो
उसके प्रति दर्द कैसा ?
ख्याल कैसा ?
और उसके द्वारा किये गए उपकारों
का एहसान कैसा?
हं ! हं ! हं! छोड़िये जनाब !
'' ऑप्शन '' के बारे में कोई सोचता है भला।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें