मेरे वतन की बेटियां ( कविता)
तमाम उम्र खौफ के साये में ,
क्यों जीती हैं मेरे वतन की बेटियां?
कोख में आते ही पहले क्यों
मार दी जाती हैं बेटियां .?
दुनिया बदसूरत ही सही लेकिन ,
जनम लेने को तरसती हैं बेटियां .
माँ-बाप के एहसान तले बेटियां .
जिंदगी मिल भी गयी तो ,
जहाँ से क्या पाती हैं बेटियां .?
फ़र्ज़, समझौते ,लाज -शर्म की
देहलीज पर रोक दी जाती बेटियां .
अपनी ज़ात ,वजूद और आज़ादी
केलिए ज़द्दो-ज़हद करती हैं बे अपनों के ,अपने समाज के
अपने ही देशके द्वारा
अपने ही देशके द्वारा
कटघरे में खड़ी की जाती हैं बेटियां .
कसूर चाहे किसी का भी हो ,
गुनाहगार ठहराई जाती हैं लेकिन बेटियां .
घर ,दफ्तर ,स्कूल ,कालेज या कोई सार्वजानिक स्थल ,
हर जगह अपमानित होती हैं बेटियां।
किस्से मांगे मदद ,कौन करे हिफाज़त ,
भरोसा करना है मुश्किल .
रिश्ते बदल जाते हैं,
नज़रें बदल जाती हैं ,
रंग बदलती गिरगिटों से ठगी जाती हैं बेटियां।
हर एक आहट पर डरी सहमी सी ,
अपने आँचल को दानवों से बचाती हुई ,
फिर भी आसमान छूना चाहती हैं बेटियां .
अपने स्वाभिमान के लिए
पूर्ण आत्म- विशवास के साथ ,
आत्म - निर्भर बनना चाहती हैं बेटियां।
पुरुष समाज में अपना एक अहम् और
समानता का दर्ज़ा चाहती हैं ,
इससे ज़ायेदा और क्या चाहती हैं ,
मेरे वतन की बेटियां।
बंद करो अब यह पक्षपात ,
अन्याय ,व्यभिचार और बलात्कार .
बदलो समाज की परिपाटी ,
के सुखी ,सुरक्षित और खुशहाल हो हर
माँ ,बहिन ,बहू और बेटी .
के इन्साफ चाहती हैं मेरे वतन की बेटियां।
अपने जीवन को अपनी मर्ज़ी से जीने के लिए
आज़ादी चाहती हैं .
खुली हवा में साँस लेने दो इन्हें ,
यह नन्ही सी चिड़िया हैं ,तितलियाँ हैं यह रंग बिरंगी ,
मेरे वतन की जान है , इज्ज़त ,हैं और शोभा हैं ,
मेरे वतन की प्यारी सी बेटियां।
कसूर चाहे किसी का भी हो ,
गुनाहगार ठहराई जाती हैं लेकिन बेटियां .
घर ,दफ्तर ,स्कूल ,कालेज या कोई सार्वजानिक स्थल ,
हर जगह अपमानित होती हैं बेटियां।
किस्से मांगे मदद ,कौन करे हिफाज़त ,
भरोसा करना है मुश्किल .
रिश्ते बदल जाते हैं,
नज़रें बदल जाती हैं ,
रंग बदलती गिरगिटों से ठगी जाती हैं बेटियां।
हर एक आहट पर डरी सहमी सी ,
अपने आँचल को दानवों से बचाती हुई ,
फिर भी आसमान छूना चाहती हैं बेटियां .
अपने स्वाभिमान के लिए
पूर्ण आत्म- विशवास के साथ ,
आत्म - निर्भर बनना चाहती हैं बेटियां।
पुरुष समाज में अपना एक अहम् और
समानता का दर्ज़ा चाहती हैं ,
इससे ज़ायेदा और क्या चाहती हैं ,
मेरे वतन की बेटियां।
बंद करो अब यह पक्षपात ,
अन्याय ,व्यभिचार और बलात्कार .
बदलो समाज की परिपाटी ,
के सुखी ,सुरक्षित और खुशहाल हो हर
माँ ,बहिन ,बहू और बेटी .
के इन्साफ चाहती हैं मेरे वतन की बेटियां।
अपने जीवन को अपनी मर्ज़ी से जीने के लिए
आज़ादी चाहती हैं .
खुली हवा में साँस लेने दो इन्हें ,
यह नन्ही सी चिड़िया हैं ,तितलियाँ हैं यह रंग बिरंगी ,
मेरे वतन की जान है , इज्ज़त ,हैं और शोभा हैं ,
मेरे वतन की प्यारी सी बेटियां।
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