हे कल्कि !
हे कल्कि !
हे तारण हार !
अतिशीघ्र आओ ,
और इस धरा के दुःख दूर करो .
हे देव !
मजबूर ,मासूम व् निर्दोष प्राणियों की
रक्षा करो .
अपने अस्र्त्रों -शस्त्रों से
दुष्टों का संहार करो .
कलयुग के दंश से ,
हमें बचाओ प्रभु !
तुम एक बार आकर तो देखो ,
दुनिया कितनी बदल गयी है .
व्यभिचार , बलात्कार , गुंडा गर्दी , बदमाशी ,
से हर नारी त्रस्त है .
युवतियां ,कन्यायें, बच्चियां तो क्या ,
शिशु तक हो रहे हैं इंसानी भेडिओं की
हवस का शिकार .
और बुज़ुर्ग महिलायों पर भी रहती है कु दृष्टि।
ऐसी हेवानियत देख कर भी जाने कैसे बची है सृष्टि .
संस्कारों , शालीनता ,शर्म -लिहाज़ ,
आचार -व्यवहार ,शिष्टता , आदि सब
पुराने व् दकियानूसी हो गए।
क्या बतायुं हे दाता !
नयी पीडी के यह युवा आधुनिकता में
कितने अंधे हो गए .
माता -पिता , और बुजुर्गों के प्रति यह
आदर और सम्मान भूल गए।
नंगे-पन पे उतारू होकर शर्म लिहाज़ तज गए।
उफ़ ! जाने कैसे इन आँखों का पानी मर गया।
तुम्हें देखो प्रभु ! आज का युवा कितना पथ भ्रष्ट हो गया,.
महंगाई ,कालाबाजारी , हत्या ,अपहरण ,
और आतंकवाद ने भी जीना दुश्वार किया,
इधर राजनीती में रस्सा-कशी ,और उधर
बईमानी ,मिलावट और धोखा-गडी ने आम-जनता को
परेशान किया।
अमीर हो रहे और अमीर ,
गरीब हो रहे और गरीब ,
और बेचारे मध्यं वर्गीय अधर में लटके हुए।
यह महंगी शिक्षा ,क्या देती है शिक्षा ?
दुकाने है डीग्रियों की ,
और कहीं मैडल है सजा हुए।
हालात बहुत ख़राब है भगवान् ,
कैसे बयाँ करूँ में सब ?
तुम आ जाओ बस एक बार ,
बनके राम,कृष्ण या नरसिंह अवतार
धारण कर ,
और संहार करो आज के रावणों ,कंसों ,और हिरन्यकश्पों का
और मुक्त करो धरा को पापियों के बोझ से .
तुम्हारी पृथ्वी हे प्रभु !
होरही है प्रदुषण से त्रस्त .
यह बेकसूर ,मासूम, बेजुबान प्रकृति ,
जिव-जंतु हो रहे है पस्त .
क्योंकि यह भी तो हो रहे हैं आज के लालची मानव की
तृष्णा के शिकार .
अब तुम आ जाओ बस !
याद है तुम्हें !
तुमने वायदा किया था .
नहीं है तो मैं याद करवा दूँ !
तुमने त्रेता युग में भी ,
और तुमने द्वापर में भी ,
यह वायदा किया था की
'' जब-जब धरती पर पाप बढ़ेंगे ,
असुर बेकसूर जिव-जंतु और इंसानों का जीवन
दुश्वार करेंगे ,
तब तुम आयोगे ,
इस धरती को पापियों से मुखत करवाने आयोगे''
गीता और रामायण में दर्ज है अब भी
तुम्हारा वोह वक्तव्य .
तो हे कल्कि !
अब समय आ गया है !
इससे पहले की यह पृथ्वी अपना
सब्र का बांध तोड़ के अपना प्रलयंकारी रूप धारण करे
तुम अतिशीघ्र आओ .
और इस पृथ्वी को संभाल लो।
तुम आ जाओ ,
बस ! एक बार अ जाओ .
तुम एक बार आकर तो देखो ,
दुनिया कितनी बदल गयी है .
व्यभिचार , बलात्कार , गुंडा गर्दी , बदमाशी ,
से हर नारी त्रस्त है .
युवतियां ,कन्यायें, बच्चियां तो क्या ,
शिशु तक हो रहे हैं इंसानी भेडिओं की
हवस का शिकार .
और बुज़ुर्ग महिलायों पर भी रहती है कु दृष्टि।
ऐसी हेवानियत देख कर भी जाने कैसे बची है सृष्टि .
संस्कारों , शालीनता ,शर्म -लिहाज़ ,
आचार -व्यवहार ,शिष्टता , आदि सब
पुराने व् दकियानूसी हो गए।
क्या बतायुं हे दाता !
नयी पीडी के यह युवा आधुनिकता में
कितने अंधे हो गए .
माता -पिता , और बुजुर्गों के प्रति यह
आदर और सम्मान भूल गए।
नंगे-पन पे उतारू होकर शर्म लिहाज़ तज गए।
उफ़ ! जाने कैसे इन आँखों का पानी मर गया।
तुम्हें देखो प्रभु ! आज का युवा कितना पथ भ्रष्ट हो गया,.
महंगाई ,कालाबाजारी , हत्या ,अपहरण ,
और आतंकवाद ने भी जीना दुश्वार किया,
इधर राजनीती में रस्सा-कशी ,और उधर
बईमानी ,मिलावट और धोखा-गडी ने आम-जनता को
परेशान किया।
अमीर हो रहे और अमीर ,
गरीब हो रहे और गरीब ,
और बेचारे मध्यं वर्गीय अधर में लटके हुए।
यह महंगी शिक्षा ,क्या देती है शिक्षा ?
दुकाने है डीग्रियों की ,
और कहीं मैडल है सजा हुए।
हालात बहुत ख़राब है भगवान् ,
कैसे बयाँ करूँ में सब ?
तुम आ जाओ बस एक बार ,
बनके राम,कृष्ण या नरसिंह अवतार
धारण कर ,
और संहार करो आज के रावणों ,कंसों ,और हिरन्यकश्पों का
और मुक्त करो धरा को पापियों के बोझ से .
तुम्हारी पृथ्वी हे प्रभु !
होरही है प्रदुषण से त्रस्त .
यह बेकसूर ,मासूम, बेजुबान प्रकृति ,
जिव-जंतु हो रहे है पस्त .
क्योंकि यह भी तो हो रहे हैं आज के लालची मानव की
तृष्णा के शिकार .
अब तुम आ जाओ बस !
याद है तुम्हें !
तुमने वायदा किया था .
नहीं है तो मैं याद करवा दूँ !
तुमने त्रेता युग में भी ,
और तुमने द्वापर में भी ,
यह वायदा किया था की
'' जब-जब धरती पर पाप बढ़ेंगे ,
असुर बेकसूर जिव-जंतु और इंसानों का जीवन
दुश्वार करेंगे ,
तब तुम आयोगे ,
इस धरती को पापियों से मुखत करवाने आयोगे''
गीता और रामायण में दर्ज है अब भी
तुम्हारा वोह वक्तव्य .
तो हे कल्कि !
अब समय आ गया है !
इससे पहले की यह पृथ्वी अपना
सब्र का बांध तोड़ के अपना प्रलयंकारी रूप धारण करे
तुम अतिशीघ्र आओ .
और इस पृथ्वी को संभाल लो।
तुम आ जाओ ,
बस ! एक बार अ जाओ .
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