सहारा ( कविता)
जिंदगी में छाए हैं ,
इस तरह अँधेरे .
हमारी राहों में चिराग तो ,
जलाये कोई।
नहीं जलाया गर चिराग ,
तो क्या होगा?
अंधेरों में ही सर टकरा-टकरा कर,
लहू -लुहान हो जायेंगे।
हम हैं गम के दरिया में
आकंठ डूबे हुए .
इधर -उधर तो कभी आसमान की और हाथ
उठाते हुए सदायें दे रहे हैं .
की कोई तो बचाए ,
इंसान या भगवन।
नहीं बचाया तो क्या होगा?
रसातल पर चले जायेंगे .
जल समाधी ले लेंगे।
हमारी तकदीर ने हमें बंद कर
दिया है एक गुफा में .
जहाँ तरह -तरह के आफरीयत मौजूद है
उनकी भयंकर और कड़क आवाज़े ,
और डरे-सहमे से हम .
पुकारना चाहते हैं किसी अपने को ,
मगर आवाज़ ही गले में दब कर रह गयी।
हाथ -पांव सुन्न हैं
धड़कन तेज़ और
दम घुट रहा है।
काश ! मौत ही आजाये .
किसी का तो दामन हाथ आ जाये ,
इन्सान भगवान या मौत !
नहीं आया दामन किसी का हाथ में
तो क्या होगा?
हम जिंदगी और मौत की देहलीज
पर ही सारी उम्र खड़े रहेंगे .
यदि ऐसा हुआ तो क्या होगा ?
दुनिया के लिए तो निरन्तर ,
मगर हमारे लिए समय रुक जायेगा।
दुनिया चलती रहेगी अपनी रफ़्तार से ,
और हम जिंदा लाश बनकर ,
एक कौने में पड़े रहेंगे।
तो क्या तब किसी का हाथ ,
किसी का दामन हमारे हाथ आयेगा?
क्या तब कोई हमें पुकारेगा?
या तब हमारे हाथों में अपना हाथ देकर ,
कहेगा,'' चलो तुम्हारी मंजिल तुम्हें पुकार रही है ''
तब क्या होगा?
हम संज्ञा शून्य होकर उनकी तरफ
देखते रहेंगे .
कैसे ख्वाब!
कैसी हसरतें!
और कैसी मंजिल !
और हम कौन हैं ?
आकंठ डूबे हुए .
इधर -उधर तो कभी आसमान की और हाथ
उठाते हुए सदायें दे रहे हैं .
की कोई तो बचाए ,
इंसान या भगवन।
नहीं बचाया तो क्या होगा?
रसातल पर चले जायेंगे .
जल समाधी ले लेंगे।
हमारी तकदीर ने हमें बंद कर
दिया है एक गुफा में .
जहाँ तरह -तरह के आफरीयत मौजूद है
उनकी भयंकर और कड़क आवाज़े ,
और डरे-सहमे से हम .
पुकारना चाहते हैं किसी अपने को ,
मगर आवाज़ ही गले में दब कर रह गयी।
हाथ -पांव सुन्न हैं
धड़कन तेज़ और
दम घुट रहा है।
काश ! मौत ही आजाये .
किसी का तो दामन हाथ आ जाये ,
इन्सान भगवान या मौत !
नहीं आया दामन किसी का हाथ में
तो क्या होगा?
हम जिंदगी और मौत की देहलीज
पर ही सारी उम्र खड़े रहेंगे .
यदि ऐसा हुआ तो क्या होगा ?
दुनिया के लिए तो निरन्तर ,
मगर हमारे लिए समय रुक जायेगा।
दुनिया चलती रहेगी अपनी रफ़्तार से ,
और हम जिंदा लाश बनकर ,
एक कौने में पड़े रहेंगे।
तो क्या तब किसी का हाथ ,
किसी का दामन हमारे हाथ आयेगा?
क्या तब कोई हमें पुकारेगा?
या तब हमारे हाथों में अपना हाथ देकर ,
कहेगा,'' चलो तुम्हारी मंजिल तुम्हें पुकार रही है ''
तब क्या होगा?
हम संज्ञा शून्य होकर उनकी तरफ
देखते रहेंगे .
कैसे ख्वाब!
कैसी हसरतें!
और कैसी मंजिल !
और हम कौन हैं ?
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