शनिवार, 11 अगस्त 2012

(anu ki shayri ) KATRA -KATRA DARD

                                      कतरा -कतरा दर्द  (  कुछ शेर )

  1,       गुल-ऐ -शौक   में   कांटे आये  हाथ ,
        कितना  फख्र था हमें अपने गुलिस्तान पर . 

2,    क्या  ज़ुल्मत  पड़ी  tतेरे जानेके बाद ,
         की रौशनी  के लिए हमें  अपना चिरागे-दिलजलना पड़ा .

3,  गम  देकर उम्र भर का ,
    वोह दामन  छुड़ाकर चले गए .
    यही  तकदीर थी   हमारी ,
    जो अब तक जिंदगी के  दोराहे पर खड़े हैं .

4, चोट  खाने  की आदतपढ़ चुकी  है हमें ,
अब  क़दम - क़दम  पर दर्द काएहसास क्या करना !

5, नहीं   डरते  अब हम किसी कज़ा से ,
    कफ़न ओढ़  लेते हैं   तब जब सुनाई दे  उसके क़दमों की आहात .
6,साज़ -ऐ -दिल  पर  छेड़कर  दर्द  की ग़ज़ल ,
     एक तराने   की  शक्ल दी है  हमने अपनी जिंदगी को. 

7,   इंसान  को  परखना  हमें  कभी ना  आया ,
     जिसे  भी  सुनाया अफसाना- ए- दर्द ,
    उसे ही दुश्मन  पाया .

8,    बागबान    करने लगे   तिजारत ,
    अपने ही   चमन  के फूलों  से ,
    हर खून  की कीमत  परहै ,
    खुदगर्जों की  रहनुमाई    देखिये .
      

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